बुधवार, अप्रैल 28, 2010

तमाशा मेरे आगे

अंधराष्ट्रवादी और पैपराजी चैनलों के दौर में सेलिब्रिटी शादी

कहते हैं कि आदतें मुश्किल से छूटती हैं. बुरी आदतें और भी मुश्किल से छूटती हैं. अपने समाचार चैनलों के साथ भी यह बात सौ फीसदी सही लगती है. मुश्किल यह भी है कि समाचार चैनलों में अच्छी आदतें तो बहुत कम हैं और बुरी आदतें लगातार बढ़ती जा रही हैं. इनकी सूची लंबी है. ऐसी ही एक बुरी आदत है, लोगों खासकर सेलेब्रिटी कहे जानेवाले लोगों के निजी जीवन में अनुचित तांक-झांक करना या नाक घुसेड़ना, उसे जरूरत से कई गुना ज्यादा उछालना, नमक-मिर्च लगाकर सनसनीखेज बनाना और सार्वजनिक जांच-पड़ताल और बहस का मुद्दा बनाकर पेश करना.

यह आदत अब एक लाइलाज बीमारी बनती जा रही है. इसका सबसे ताजा उदाहरण है – जानीमानी टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा और पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी शोएब मलिक की शादी की खबर जिसे लेकर समाचार चैनल बिलकुल बावले से हो गए हैं. माफ़ कीजियेगा, यह सिर्फ बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना वाली बात नहीं है. सच यह है कि यह बहुत योजनाबद्ध, शातिराना और कुछ मामलों में एक खास अंधराष्ट्रवादी एजेंडे के साथ किया जा रहा पागलपन है. इसमें चैनलों का संयम, विवेक, तर्क और अनुपातबोध सब जवाब दे गए हैं. सानिया-शोएब शादी की कवरेज देखकर ऐसा लगता है जैसे चैनलों ने निजता के अधिकार जैसी किसी चीज का कभी नाम ही नहीं सुना है और न ही यह उनकी कथित स्व-नियमन की किताब में है.

यही कारण है कि इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़कर अधिकांश चैनलों पर सानिया-शोएब की निजता का खुलेआम मखौल उड़ाया गया. हालांकि सानिया और शोएब ने अपनी निजता का हवाला देकर चैनलों से उन्हें अकेला छोड़ने की अपील की लेकिन चैनलों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. अधिकांश चैनलों ने सानिया के घर के ठीक सामने ओ.बी वैन और कैमरे के साथ अपने कई-कई रिपोर्टरों को तैनात कर दिया. यहां तक कि कई चैनलों ने दिल्ली से अपने खास संवाददाताओं को कवरेज के लिए भेजा जिसमें ‘सबसे तेज’ चैनल ने अपने सबसे तेजतर्रार क्राइम रिपोर्टर को भेजकर अपनी प्राथमिकता जाहिर कर दी. आश्चर्य नहीं कि अधिकांश चैनलों ने सानिया-शोएब की शादी की कवरेज में शोएब की ‘पहली पत्नी’ आयशा के बहाने प्रेम त्रिकोण, अपराध, साजिश और धोखा को सबसे ज्यादा अहमियत दी.

चैनलों की इस ‘कहानी’ में बिना किसी अपवाद के शोएब एक शातिर झूठा, दिलफरेब, धोखेबाज खलनायक, उसकी ‘बेवफाई की शिकार’ आयशा एक सताई औरत और उसके ‘जाल में फंसती’ दिख रही सानिया एक मासूम टेनिस स्टार के रूप में पेश की गई. टेबलॉयड पत्रकारिता का सिरमौर एक हिंदी चैनल यहीं नहीं रूका, उसने बाकायदा स्टूडियो में कचहरी (या कंगारू कोर्ट) लगाकर शोएब पर मुक़दमा चलाया और सजा भी सुना दी. लेकिन जैसे इतना ही काफी नहीं था, उसने सानिया-शोएब की कुंडली में काल सर्प भी खोज निकला. कल्पनाओं की उड़ान भरने में बाकी चैनल भी बहुत पीछे नहीं रहे. फिर उनके बीच ऐसी होड़ शुरू हुई कि कोई बंधन नहीं रहा.

लेकिन इस पूरे प्रकरण में सबसे अधिक खतरनाक और चिंताजनक दो प्रवृत्तियां ऐसी दिखीं जिनपर चैनलों के संपादकों और उनके संगठन- एन.बी.ए को जरूर गंभीरता से आत्ममंथन करना चाहिए. पहली बात, कुछ चैनलों ने सानिया-शोएब की शादी की तैयारियों को दिखाने की होड़ में अपनी सीमा का इस हद तक अतिक्रमण किया कि सानिया के घर के झरोखों और दरवाजों के खुलने-बंद होने के बीच दिखनेवाले दृश्यों को दिखाने से भी परहेज नहीं किया. जाहिर है, इसके लिए उन्होंने न सिर्फ सानिया के घर के बाहर बल्कि सामने के उंचे घरों की बालकोनियों आदि पर भी खुले और छुपे कैमरे तैनात किए ताकि किसी भी तरह से सानिया-शोएब की बातें करते ,डांस करते और आते-जाते ‘एक्सक्लूसिव’ तस्वीरें मिल जाएं और वे उसे ‘सबसे आगे’ दिखा सकें.

पर वे भूल गए कि यह सानिया-शोएब की निजता में खुली घुसपैठ है. याद दिलाने की जरूरत नहीं है कि यह टैबलॉयड पत्रकारिता की सबसे छिछली और पर-रतिसुख (वोयरिज्म) प्रवृत्ति- पपराजी पत्रकारिता की सबसे खास पहचान है. पश्चिम देशों में, सेलेब्रिटीज के आगे-पीछे यहां तक कि उनके सबसे निजी क्षणों को भी कैमरे में कैद करने के लिए खुले-छिपे फोटोग्राफरों/पत्रकारों की भीड़ चौबीसों घंटे उनके पीछे भागती रहती है. इन ‘एक्सक्लूसिव’ तस्वीरों के लिए टेबलॉयड चैनलों और अखबारों से पैपराजी पत्रकारों को लाखों-करोड़ों डालर मिलते हैं. कहते हैं कि ब्रिटिश राजकुमारी डायना ऐसे ही पैपराजी फोटोग्राफरों/पत्रकारों से बचने के लिए भागते हुए कार दुर्घटना में मारी गईं थीं. अगर देश में इस प्रवृत्ति को इसी तरह अनदेखा किया गया तो भारत में भी पैपराजी संस्कृति को फलने-फूलने से नहीं रोका जा सकेगा.

दूसरी खतरनाक प्रवृत्ति यह दिखी कि कुछ अपवादों को छोड़कर सबने सानिया-शोएब के प्रेम और शादी के फैसले को एक सांप्रदायिक और अंधराष्ट्रवादी एंगल से भी पेश किया. कुछ चैनलों में तो यही भाव सबसे प्रमुख था. शोएब के खलनायकीकरण के पीछे उसकी गलतियों से अधिक उसका पाकिस्तानी नागरिक होना शायद सबसे बड़ा कारण था. चैनलों में एक खास तरह की अंधराष्ट्रवादी इर्ष्या का भाव साफ दिख रहा था कि एक भारतीय स्टार को एक पाकिस्तानी दुल्हन बनाकर कैसे ले जा सकता है? नतीजा, एक तरह से शोएब के साथ सानिया की भी ‘आनर किलिंग’ करने की भरपूर कोशिश की गई जिसका मकसद उनकी शादी को किसी भी तरह से तोड़ना या रोकना था.

इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कैसे मीडिया का एक बड़ा हिस्सा अंध पाकिस्तान विरोधी हो गया है और दोनों देशों के बीच दीवार बनकर खड़ा हो गया है. यहां तक कि वह दोनों देशों के बीच लोगों के स्तर पर भी संपर्कों और रिश्तों का विरोधी होता जा रहा है. यह चिंता की बात इसलिए है कि एक सांप्रदायिक और अंधराष्ट्रवादी मीडिया सिर्फ सानिया और शोएब के लिए ही नहीं बल्कि पूरे उपमहाद्वीप की शांति, दोस्ती और स्थिरता के लिए खतरा है. क्योंकि दांव पर सिर्फ सानिया-शोएब की शादी ही नहीं दो देशों की दोस्ती भी लगी हुई है.
(तहलका, अप्रैल)

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