गुरुवार, जुलाई 28, 2011

मूल्यों पर मुनाफे को तरजीह देनेवाले कार्पोरेट मीडिया के सिरमौर हैं मर्डोक


मर्डोक ने अनुदार, मजदूर विरोधी और युद्धोन्मादी पत्रकारिता को आगे बढाया है   

दूसरी किस्त

कहते हैं कि मर्डोक के मीडिया साम्राज्य में उसकी इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं खड़कता है. इसलिए यह स्वीकार करना बहुत मुश्किल है कि यह सारा धतकरम मर्डोक की मर्जी के बिना हुआ है. सच यह है कि मर्डोक ने ‘जो बिकता है, वही चलता और छपता है’ के तर्क के साथ आक्रामक तरीके से सनसनीखेज, चटपटे-रसीले, परपीडक रतिसुख देनेवाले ‘स्कूप’ खोजने को बढ़ावा दिया जो आज टैबलायड पत्रकारिता की पहचान बन चुका है.

इस मर्डोकी टैबलायड पत्रकारिता में पत्रकारिता के उसूलों, मूल्यों, आदर्शों और आचार संहिता से लेकर आम नियम-कानूनों के लिए कोई जगह नहीं है. वहां सिर्फ उस सर्कुलेशन और टेलीविजन रेटिंग पॉइंट्स की कदर और पूछ है जो अधिक से अधिक विज्ञापनदाताओं को खींच कर ला सकता है और इस तरह से मोटे मुनाफे की गारंटी कर सकता है.


कहते हैं कि मर्डोक को मुनाफे के अलावा और कुछ नहीं दिखता है. आखिर उसने छह महाद्वीपों में फैले अपने विशाल मीडिया साम्राज्य को यूँ ही नहीं खड़ा किया है. आज मर्डोक की मुख्य कंपनी न्यूज कार्पोरेशन मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र में सालाना कारोबार के मामले दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है. वर्ष २०१० में उसका सालाना कारोबार ३२.७७ अरब डालर और शुद्ध मुनाफा २.५३ अरब डालर था. उसकी कुल परिसंपत्ति ५४.३८ अरब डालर की है.

आश्चर्य नहीं कि आज खुद मर्डोक की परिसंपत्तियां लगभग ७.६ अरब डालर की हैं और वह दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में ११७ वें स्थान पर है. लेकिन अपने विशाल मीडिया साम्राज्य के कारण मर्डोक का राजनीतिक प्रभाव इससे कहीं अधिक है. ‘फ़ोर्ब्स’ पत्रिका ने मर्डोक को दुनिया के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में १३ वें स्थान पर रखा है.

असल में, इस विशाल मीडिया साम्राज्य को खड़ा करने के लिए मर्डोक ने पूरी निर्ममता के साथ उस छिछली-छिछोरी और वैचारिक तौर पर अनुदार और युद्धोन्मादी पत्रकारिता को आगे बढ़ाया जिसमें न सिर्फ पत्रकारिता के उसूलों और मूल्यों के साथ नियम-कानूनों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई गईं बल्कि वैचारिक रूप से उदार और वाम विचारों, राजनीति, नेताओं, बुद्धिजीवियों, श्रमिक संगठनों आदि को निशाना बनाया गया.

यही नहीं, मर्डोक के अख़बारों और चैनलों ने मुक्त बाजार और राज्य की सीमित भूमिका की वकालत से लेकर बुश के आतंकवाद के खिलाफ युद्ध और इराक-अफगानिस्तान पर हमले के पक्ष में जहरीला प्रोपेगंडा अभियान चलाने में कोई कसर नहीं उठा रखी.

दरअसल, मर्डोक ने ७०-८० के दशक में ब्रिटेन में मार्गरेट थैचर की मुक्त बाजार समर्थक नव उदारवादी आर्थिक नीतियों का खुलकर समर्थन किया. थैचर की मदद से मर्डोक ने अख़बारों की ट्रेड यूनियनों को तोड़ा और खत्म कर दिया. बदले में, मर्डोक ने थैचर को रेल और कोयला खनिकों समेत अन्य श्रमिक आन्दोलनों को तोड़ने और खत्म करने के लिए खुला समर्थन दिया.

निजीकरण की जमकर वकालत की और सत्ता प्रतिष्ठान से अपनी नजदीकियों का फायदा नियमों-कानूनों में तोड़-मरोड़ से लेकर मीडिया रेगुलेशन को अपने अनुकूल बनवाने में किया. बदले में, जब सत्ता प्रतिष्ठान को नव उदारवादी अमीरपरस्त नीतियों से लेकर युद्ध बेचने के लिए मर्डोक की जरूरत पड़ी, उसका मीडिया साम्राज्य सबसे आगे रहा.

कहने का अर्थ यह कि मर्डोक और राजनेताओं के बीच सम्बन्ध एक तरह के लेनदेन से बंधा हुआ है. इस गठजोड़ को खबरों में तोड़-मरोड़ करने, फर्जी खबरें गढ़ने और खबरों को मनमाना अर्थ देने के लिए ‘स्पिन’ करने से कभी परहेज नहीं हुआ. कहते हैं कि मर्डोक की पत्रकारिता डिक्शनरी में सच्चाई, वस्तुनिष्ठता, संतुलन और निष्पक्षता जैसे शब्द नहीं हैं.

आश्चर्य नहीं कि मर्डोक और उसका विशाल मीडिया साम्राज्य आज पत्रकारिता में ‘डमबिंग डाउन’ यानि खबरों को हल्का-फुल्का, छिछला, मनोरंजक और बिना माने-मतलब का बनाने, सेक्स स्कैंडलों और साफ्ट पोर्नोग्राफी के जरिये पीत पत्रकारिता को नए सिरे से पारिभाषित करने, अनुदार पूर्वाग्रहों को आक्रामक तरीके से थोपने, मुनाफे के लिए ख़बरों की खरीद-फरोख्त से लेकर उसके हर तरह के व्यावसायिक इस्तेमाल का वैश्विक प्रतीक बन चुके हैं.

मर्डोक के मीडिया साम्राज्य के प्रभाव का अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि ब्रिटेन और अमेरिका समेत दुनिया के और कई देशों में सत्ता में पहुँचने और वहां टिके रहने के लिए राजनेताओं में व्यक्तिगत रूप से मर्डोक से आशीर्वाद लेने की होड़ लगी रहती है. हालत यह है कि सत्ता का दावेदार कोई राजनेता मर्डोक को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकता है.

यही नहीं, मर्डोक ने अपने रास्ते में आनेवाले राजनेताओं-अफसरों को धमकाने से भी गुरेज नहीं किया. हैकिंग विवाद के बाद ब्रिटेन के कई राजनेताओं ने मुंह खोलना शुरू किया है जिससे यह पता चल रहा है कि मर्डोक के लोगों ने उन्हें चुप न रहने पर किस तरह से देख लेने की धमकी दी. यहाँ तक कि पूर्व प्रधानमंत्री गोर्डन ब्राउन भी इन धमकियों के शिकार हुए.

सच पूछिए तो ‘हरि अनंत, हरि कथा अनंता’ की तर्ज पर मर्डोक के किस्से अनंत हैं. लेकिन इस पूरे किस्से का सबसे बड़ा सबक यह है कि किसी एक व्यक्ति के हाथ में इतने बड़े मीडिया साम्राज्य का संकेन्द्रण न सिर्फ पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए बल्कि व्यापक लोकतंत्र और समाज के लिए भी बहुत घातक और खतरनाक हो सकता है.

कहने की जरूरत नहीं है कि इसमें भारत जैसे देशों के लिए गहरे सबक हैं जहाँ न सिर्फ खुद मर्डोक का मीडिया साम्राज्य लगातार अपने पैर पसार रहा है बल्कि कई देशी मीडिया मुग़ल भी उसके रास्ते पर चल रहे हैं.

यही नहीं, एक प्रवृत्ति के बतौर भारतीय मीडिया का बढ़ता मर्डोकीकरण किसी से छुपा नहीं है. मजा देखिए कि आत्मावलोकन के बजाय इसे यह कहकर अनदेखा करने की कोशिश की जा रही है कि हमारे यहाँ ब्रिटेन की तरह छिछोरी टैबलायड पत्रकारिता का कोई अस्तित्व नहीं है. लेकिन आप चाहें तो हमें अपने मर्डोक, रेबेका ब्रुक्स और एंडी कॉलसन को ढूंढने में बहुत दिक्कत नहीं होगी.

('जनसत्ता' के २७ जुलाई को सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित आलेख की दूसरी किस्त)

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