tag:blogger.com,1999:blog-8157191427767672214.post4016537436162925223..comments2023-10-03T16:20:46.521+05:30Comments on तीसरा रास्ता: लोकतंत्र में सवालों से ऊपर कोई नहीं है, केजरीवाल भी नहीं आनंद प्रधानhttp://www.blogger.com/profile/05288123571817148120noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-8157191427767672214.post-71304855137643013782012-10-21T19:44:51.999+05:302012-10-21T19:44:51.999+05:30राष्ट्रगान के लिखने पर कुछ लोगोँ ने गुरुदेव पर जार...राष्ट्रगान के लिखने पर कुछ लोगोँ ने गुरुदेव पर जार्ज पंचम का स्तुतिगान करने का आरोप लगाया था। तब गुरुदेव ने बस इतना कहा था कि इस प्रकार के प्रश्नोँ का उत्तर देना वे उचित नहीँ समझते। <br />करगिल के युद्ध के समय को लेकर जब विरोधी सक्रीय हुये तो अटल जी ने कहा कि यहाँ तो उनकी राष्ट्रभक्ति पर संदेह किया जा रहा जिसका मेरे पास कोई जबाव नहीँ है और ऐसा अपराध तो उनसे कभी सपने मेँ भी नहीँ होगा।<br /><br />निश्चित रुप से लोकतंत्र मेँ सवालोँ से ऊपर कोई नहीँ होता। दिग्विजय के सवालोँ का जवाव दिया जाये या नहीँ, उनकी संख्या तो 270 होना निश्चित है। कुछेक प्रश्नोँ को छोड़कर सभी वे-सिर-पैर के प्रश्न हैँ।<br /><br />और अंत मेँ, मेरी आशा ये है कि कब मैँ, डा. योगेन्द्र यादव और डा. आनंद कुमार के साथ आपको अरविँद केजरीवाल के साथ मंच पर देखूँ।<br /> अमित/Амит/অমিত/Amithttps://www.blogger.com/profile/08928179569667303541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8157191427767672214.post-81994513230631821762012-10-21T16:08:50.164+05:302012-10-21T16:08:50.164+05:30eयहाँ तो सबकुछ उल्टा है सर. अरविन्द जी ये सोच रहे ...eयहाँ तो सबकुछ उल्टा है सर. अरविन्द जी ये सोच रहे है की ये लोकतान्त्रिक देश सिर्फ उन्हें ही सवाल पूछने का हक दिया है, उनसे कोई सवाल नहीं पूछ सकता है और ऐसी मानसिकता तो नाज़ी और फाशिवादियो की रही है, क्या देश का यह आम आदमी उसी रास्ते की और निकल पड़ा है? मुझे नहीं लगता है की दिग्विजय सिंह के सवाल में कुछ गलत है, और अरविन्द अगर एक ही जगह २० साल नौकरी किये है जबकि नियम ये कहता है की तीन साल से ज्यादा एक आदमी नहीं रह सकता तो फिर कैसे ये उस पद पर २० साल तक बने रहे, क्या इस आम आदमी ने कुछ ख़ास किया था या कुछ ख़ास करने के लिए किसी को उपकृत किया था? आखिर कौन सी वजह है ये तो इस आम आदमी को बताना ही चाहिए? ऐसा मेरा मानना है. जब भी अरविन्द जी से कोई कुछ पूछता है तो वो कहते है वेबसाइट पर है देख लो, अरे भाई आप ही उस वेबसाइट को देख के क्यों नहीं बता देते? जहा तक मैंने उनकी जो वेबसाइट देखि है उसमे ऐसा कुछ मुझे नहीं दिखा जिस से अरविन्द जी पाक साफ़ दिखते है, क्या कबीर फाउंडेशन को फोर्ड फाउंडेशन से पैसा मिला है या नहीं मिला है ये बताने में क्यों नाराज़ हो रहे ये लोग. <br />जब आप किसी को कठघरे में खड़े कर सकते है तो आप को कोई क्यों नहीं कर सकता है, सच पूछना कोई गुनाह नहीं है तो फिर सच बताना क्यों गुनाह माना जा रहा है, अरुधंति रॉय ने भी ये बात कही थी की अरविन्द जी की संस्था को फोर्ड फाउंडेशन से कुछ मिला है, एक प्रेस कांफ्रेंस में अरविन्द कह रहे थे की नेशनल एडवाइजरी कौंसिल के पास कोई पॉवर नहीं है, क्या अरविन्द जी ये आन्दोलन इसी पॉवर के लिए कर रहे है, अगर पारदर्शिता इन्हें इतना ही पसंद है तो अपने ही टीम को एक व्यक्ति को बाहर क्यों कर दिया था? सिर्फ इसलिए की उसने मीटिंग की रिकॉर्डिंग कर ली थी. ऐसे में कोई कैसे यकीं कर ले की अरविन्द दूध के धुले हुए है बाके घुन में सने हुए हैकुमार संजयhttps://www.blogger.com/profile/16017365032357198859noreply@blogger.com